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न गुंचे हैं न गुल हैं आह अपने / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
Kavita Kosh से
न ग़ुंचे हैं न गुल हैं आह अपने
फ़क़त कांटे हैं फ़र्शे-राह अपने
किसे अपना कहे कोई जहां में
जब आंखें फेर लें नागाह अपने
चले हो सूए-मयख़ाना तो यारों
हमें भी ले चलो हमराह अपने
ख़ज़ाने दे गये रंजो-अलम के
वो ख़ुशियां ले गये हमराह अपने
पलट कर काश आ सकते दुबारा
वो दिन, वो पल, वो सालो-माह अपने
निक़ाब अपना उलटने को है कोई
छुपा लें जल्वे महर-ओ-माह अपने
सरे-मंज़िल पहुंचते हम भी 'रहबर`
वो चलते दो क़दम हमराह अपने