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न घर ई हमारौ न दुनियाँ हमारी / उर्मिला माधव
Kavita Kosh से
न घर ई हमारौ न दुनियाँ हमारी,
पतौ जे चलौ कै हमईं ए भिकारी,
इमारत तौ अब लौं धरी जों की तों ऐं,
कै साँसई अचानक चली गई बिचारी,
हबाके भरे जिन्ने दुनियाँ में ऊंचे,
बेऊ मर कैं कित्ते भये भारी-भारी,
जि निश्चित है सब कूँ ई मरनौ पडैगौ,
कभू जाकी बारी, कभू बाकी बारी,
जो कहनी ई हमकूँ, सो कहि दई ऐ हमनै,
तौ मानौ न मानौ है राजी तुम्हारी,
सबै छोड़ जानौ है दुनियाँ कौ मेला,
डरी यईं रहेंगी महलिया अटारी...