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न जवान / केदारनाथ अग्रवाल
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					न जवान-
न बूढ़ा-
न जीवित-
न मरा-
पहचान खोया आदमी,
खाक हो चुका
खाक छानते-छानते!
रचनाकाल: २०-०६-१९९१
 
	
	

