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न जाने उसे अब क्या-क्या होता है / शमशाद इलाही अंसारी
Kavita Kosh से
न जाने उसे अब क्या क्या होता है
बस, मुहब्बत में इंसान हवा होता है।
वो जो पहले तुनकता था बात-बात पर
कुछ भी कहो उसे वो अब न ख़फ़ा होता है।
मुस्कुराता,गुनगुनाता घूमा फ़िरे शहर-शहर
कहते हैं ये मलंग भी कोई ख़ुदा होता है।
"शम्स" जिसकी नज़र उसकी नज़र से मिल गई
सुना है वो शख़्स इस दुनिया से जुदा होता है।
रचनाकाल : 18.04.2003