Last modified on 1 सितम्बर 2009, at 14:10

न जाने उसे अब क्या-क्या होता है / शमशाद इलाही अंसारी

न जाने उसे अब क्या क्या होता है
बस, मुहब्बत में इंसान हवा होता है।

वो जो पहले तुनकता था बात-बात पर
कुछ भी कहो उसे वो अब न ख़फ़ा होता है।

मुस्कुराता,गुनगुनाता घूमा फ़िरे शहर-शहर
कहते हैं ये मलंग भी कोई ख़ुदा होता है।

"शम्स" जिसकी नज़र उसकी नज़र से मिल गई
सुना है वो शख़्स इस दुनिया से जुदा होता है।


रचनाकाल : 18.04.2003