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न जाने वक्त कैसा आ गया है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
न जाने वक्त कैसा आ गया है।
बशर हर खुद को धोखा दे रहा है॥
फ़िज़ा करने लगी मदमस्त सबको
मेरा दामन हवाओं ने छुआ है॥
हुआ पत्ता बहुत नाराज शायद
तभी तो टूट डाली से गिरा है॥
पपीहा हो गया खामोश है क्यों
किसी ने क्या उसे धोखा दिया है॥
कुहुकती कोकिला अमराइयों में
वो शायद मीत को देती दुआ है॥
बहाये अश्क़ आँखों ने बहुत पर
हमारा दर्द अब भी अनछुआ है॥
बढ़ा दामन कोई तो अश्क़ पोछे
मुसलसल आँख से बहने लगा है॥