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न जापान की छायाएँ / विलिमीर ख़्लेबनिकफ़ / वरयाम सिंह

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न जापान की नाज़ुक छायाएँ
न तुम, ओ मधुभाषी भारत-पुत्रियों,
तुम्‍हारे बोल इतने शोकाकुल नहीं हो सकते
जितने कि इस अन्तिम साँझ के बोल ।

मृत्‍यु से पहले पुनः प्रकट होता है जीवन,
इतनी तीव्रता और किसी दूसरे रूप में !
और यही नियम सुतल है
सफलताओं और मृत्‍यु के नृत्‍य का ।


मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह