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न जीना न मरना / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
न जीना
न मरना
फटे वस्त्र को बार-बार सीना
हरे पेड़ से पत्तियों का गिरना
न यहाँ-
न वहाँ
न भीतर-
न बाहर
एक ही चिलम से धुँआ पीना
पैर से नहीं
पेट के बल फिरना
सच है अंधा
झूठ है बहरा
इन्हीं दोनों का है पहरा
जगह-जगह गहरा
रचनाकाल: १३-०९-१९६५