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न टूटे सुगन / ओम पुरोहित ‘कागद’

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भूख-प्यास और सांस को
थाम कर
रोक रखा है
सांडे ने अपना बिल
इस आस में
कि तू बरसेगा
किसी पल
एक क्षण भी
न टूटे सुगन
इसी आन पर
लगाए बैठा है
अपना जीवन दांव पर।

इस हत्या के अपराध से
मुक्त होने के बहाने ही सही
सुगन की साख भरने आ
आ तो सही एक बार।