न दया-भाव कोई न शिकायत / सिर्गेय येसेनिन / वरयाम सिंह
न दया-भाव कोई, न शिकायत, न रोना-धोना,
सब कुछ बीत जाएगा सेब के झरते फूलों की तरह,
सुनहले पतझर के रूप पर मोहित
मैं न रह सकूँगा अब और अधिक युवा ।
ठण्ड से ठिठुरते मेरे हृदय !
तू भी धड़का नहीं करेगा और अधिक ।
भुर्ज वृक्षों से भरा मेरा यह देश मुझे
ललचाएगा नहीं नंगे पाँव चलने के लिए ।
ओ मेरे आवारा मन !
कविता की प्रेरणा नहीं मिल रही तुझसे अब ।
ओ मेरी खोई ताजगी,
आँखों की उत्कटता, भावों के प्रवाह !
और अधिक कृपण हो गया हूँ अपनी इच्छाओं में,
ओ जीवन, तुम क्या मात्र सपना थे ?
मैं जैसे संगीतमय बहार की सुबह में
सवार हूँ नीले घोड़े पर ।
इस संसार में हम सब नश्वर हैं
आहिस्ता-आहिस्ता टपक रहा है ताँबा मेपलों से ।
ख़ुशक़िस्मत रहे तुम हमेशा
कि मुरझाने और मरने का आ गया है अब समय ।