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न देख पाये जिसे वो ही ख्वाब माँगे है / रंजना वर्मा

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न देख पाये जिसे वो ही ख्वाब माँगे है
किये सवाल का हर वो हिसाब माँगे है

मिरा बच्चा जो कभी जिद पे उतर आये तो
वो आसमाँ में खिला माहताब माँगे है

उस से पैग़ामे तमन्ना कभी दिया न गया
मगर वो अब मेरे दिल की किताब माँगे है

जो पुरसुकून हैं तनहाइयाँ मुझे हासिल
गुजर गये वो पलों का हिसाब माँगे है

यक़ीन कैसे दिलाऊँ मैं वफ़ा का अपनी
कि अब वो मुझ से तो मेरा हिजाब माँगे है

कहूँ उस से मेरी आंखों के ख्वाब ले जाये
वो मुझसे चीज़ कोई लाजवाब माँगे है

झुकी जातीं मेरी पलकें हया से बोझिल हो
शरीर मुझ से लबों का गुलाब माँगे है

कन्हैया आ के दिल का द्वार खटखटा जा तू
निगाह तेरे दरश का सवाब माँगे है

लिखी हुई हर एक वरक़ दास्ताँ मेरी
तिरी निगाह मगर आफ़ताब माँगे है