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न दो प्यार / अज्ञेय
Kavita Kosh से
न दो प्यार खोलो न द्वार
तुम कोई इस अन्धी दिवार में :
पा लूँगा दरार मैं कोई। हो न सकूँगा पार-
न हो : मैं बीज उसी में डालूँगा : वह फूटेगा : डार-डार
से उस की झूमेगा फल-भार।
नहीं तो और कौन है द्वार
-या प्यार?
अल्मोड़ा, 5 जून, 1958