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न पीर दूर हो, ज़रा दुलार दीजिये / मनोज मानव
Kavita Kosh से
न पीर दूर हो, ज़रा दुलार दीजिये,
मिले गरीब तो सदैव प्यार दीजिये।
कमान हाथ में रहे तमाम जिंदगी,
अमूल्य ज्ञान से इसे सँवार दीजिये।
सटीक शिल्पबद्ध हो अमूल्य भाव हो,
कमी बचे न, काव्य को निखार दीजिये।
अभद्र छेड़छाड़ का यही निदान है,
सुता शरीर को बना कटार दीजिये।
समाप्त ज़िन्दगी न कीजिये गुमान में,
समाज के लिए नया विचार दीजिये।
बना शरीर को मशीन सोचते नहीं,
कभी-कभी इसे ख़ुशी अपार दीजिये।
किसी मनुष्य का दिमाग हो खराब तो,
चढ़े हुए खुमार को उतार दीजिये।
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आधार छन्द-अनंद (14 वर्णिक)
सुगम मापनी-लगा 7
पारम्परिक सूत्र-ज र ज र ल ग