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न पूछो कौन अब किसकी निगाहों का निशाना है / रंजना वर्मा

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न पूछो कौन अब किसकी निगाहों का निशाना है।
अभी थोड़ी वफ़ा इस जिंदगानी से निभाना है॥

वजह ढूँढ़े नहीं मिलती जिये जाने की दुनियाँ में
बहुत दिन जी लिए तुम बिन हमें अब पास आना है॥

जमाने भर के दर्दों ने है कुटी ढूँढ़ ली मेरी
करें क्या आँसुओं का आँख से रिश्ता पुराना है॥

बहुत हैं अड़चनें पथ में हैं पल-पल ठोकरें मिलतीं
न थक कर बैठ तुम जाओ अभी तो दूर जाना है॥

न तोड़ो तुम कली को ये बड़ी मासूम है होती
इसे सम्बंध खुशबू खार दोनों से निभाना है॥

सुबह से ही चिरैया चहचहाती मेरे आँगन में
बिखेरा उसकी खातिर भी जरा-सा पानी दाना है॥

नदी दौड़ी चली जाती समंदर से मिलन करने
समंदर का मगर दिल तो सदा से आशिक़ाना है॥