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न पूछो हमसे कैसे जी रहे हैं / रविकांत अनमोल
Kavita Kosh से
न पूछो हमसे कैसे जी रहे हैं
ये लम्हे ज़हर हैं हम पी रहे हैं
समझ उनको न आई तो न आई
ज़बां हम बोलते दिल की रहे हैं
ख़ुशी पल में चली जाती है आकर
हमारे साथ तो ग़म ही रहे हैं
हमें जब ज़िंदगी लगती थी भारी
कभी हालात ऐसे भी रहे हैं