न बदले आदमी जन्नत से भी बैतुल-हज़न अपना / दाग़ देहलवी
न बदले आदमी जन्नत से भी बैतुल-हज़न<ref> रहने की जगह</ref> अपना
कि अपना घर है अपना और है अपना वतन अपना
जो यूँ हो वस्ल तो मिट जाए सब रंजो-महन<ref> पीड़ा</ref> अपना
ज़बाँ अपनी दहन<ref> मुँह </ref>उनका ज़बाँ उनकी दहन अपना
न सीधी चाल चलते हैं न सीधी बात करते हैं
दिखाते हैं वो कमज़ोरों को तन कर बाँकपन अपना
अजब तासीर पैदा की है वस्फ़े-नोके-मिज़गाँ<ref> विशिष्ट पलकों</ref> ने
कि जो सुनता है उसके दिल में चुभता है सुख़न अपना
पयामे-वस्ल<ref>प्रणय-सन्देश</ref>,क़ासिद<ref>सन्देशवाहक</ref> की ज़बानी और फिर उनसे
ये नादानी वो नाफ़हमी<ref>नासमझी</ref> ये था दीवानापन अपना
बचा रखना जुनूँ के हाथ से ऐ बेकसो, उसको
जो है अब पैरहन<ref>वस्त्र</ref> अपना वही होगा क़फ़न अपना
निगाहे-ग़म्ज़ा<ref> दृष्टिपात</ref> कोई छोड़ते हैं गुलशने दिल को
कहीं इन लूटने वालों से बचता है चमन अपना
यह मौका मिल गया अच्छा उसे तेशा<ref>कुल्हाड़ी</ref> लगाने का
मुहब्बत में कहीं सर फोड़ता फिर कोहकन अपना
जो तख़्ते-लाला-ओ-गुल के खिले वो देख लेते हैं
तो फ़रमाते हैं वो कि ‘दाग़’ का ये है ये चमन अपना