न बस में किसी के ये हालात होंगे / मधुभूषण शर्मा 'मधुर'
न बस में किसी के ये हालात होंगे ,
ज़मीं पे फ़लक-से ही दिन रात होंगे !
अगर बात होती तो बनता फ़साना ,
हैं चर्चे महज़ तो बिना बात होंगे !
वही इस जहां की भी हद आख़िरी है ,
जहां तक भी फैले ख़यालात होंगे !
तसव्वुर बनेगा ये जब-जब हक़ीक़त ,
वही चन्द लम्हे करामात होंगे !
जवाबों की होती नहीं उम्र ज़्यादा ,
कि ज़िन्दा हमेशा सवालात होंगे !
गया कौन हमको यहां छोड़ ऐसे ,
कि ढ़ूढ़ो कहीं तो निशानात होंगे !