भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

न भई पापा, ना-ना-ना / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गरम जलेबी आलू छोला,
न भई पापा, ना-ना-ना। ई
शाम ढ़ले जब भी घर आएँ,
बस कुछ ठंडा ले आना।

आइसक्रीम भी ला सकते हो।
कुल्फी मुझे खिला सकते हो।
कोका कोला भी विकल्प है,
लस्सी मुझे पिला सकते हो।
जीरा पानी, गोल फुलकियाँ,
न भई पापा ना-ना-ना।

आम दश हरी चल जाएंगे।
खूब संतरे मिल जाएंगे।
पिलवाओगे अगर शिकंजी,
सबके चेहरे खिल जाएंगे।
पिज्जा वर्गर और चाउमिन,
न भई पापा ना-ना-ना।

तरबूजों की भी बहार है।
अंगूरों पर क्या! निखार है।
खरबूजों के मजे अभी हैं,
खाने का मन बार-बार है।
गोल इमरती, बरफी, चम-चम,
न भई पापा ना-ना-ना।