भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

न भातीं चाँदनी रातें सितारे भी नहीं भाते / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

न भातीं चाँदनी रातें सितारे भी नहीं भाते
ये फैले हर तरफ दिलकश नजारे भी नहीं भाते

तुम्हारे बिन हुई है ज़िन्दगी कुछ इस तरह तन्हा
चला जाता नहीं लेकिन सहारे भी नहीं भाते

पहुँचना पार बहती धार में नैया फँसी मेरी
पड़ी मझधार में है पर किनारे भी नहीं भाते

बड़ा मुश्किल सफ़र है और काँटों से भरी राहें
मगर इस बेसहारे को सहारे भी नहीं भाते

नहीं दिन रात हैं कटते बुढ़ापा जब सताता है
यही वह वक्त है जब नयन तारे भी नहीं भाते