न मैं हूँ शैशव का मृदुहास / रामेश्वरीदेवी मिश्र ‘चकोरी’
न मैं हूँ शैशव का मृदुहास, न मैं हूँ यौवन का उन्माद
न मैं हूँ आदि, न मैं हूँ अन्त, न हूँ वृद्धापन का अवसाद।
प्रकृति की हरियाली से तोल, हमारे जीवन का क्या मोल!
न हूँ मैं किसी हार की जीत, न मैं हूँ किसी हृदय का प्यार।
न मैं हूँ शान्ति, न मैं हूँ भ्रांति, न मैं हूँ सुखद प्रणय-उपहार।
समीरण के कंचन से तोल, हमारे जीवन का क्या मोल!
न मैं हूँ घृणा, न मैं हूँ प्रेम, न मैं हूँ आन, न मैं सम्मान।
न हूँ आशा की उज्ज्वल ज्योति, न मैं हूँ गान, न मैं अभिमान।
निशा के अन्धकार से तोल, हमारे जीवन का क्या मोल!
जिसे सुनती हूँ केवल स्वप्न, वही मेरा जीवन-संगीत।
जहाँ सीमित जग का अनुताप, वही है मेरा विसुध अतीत।
विश्व को नश्वरता से तोल, हमारे जीवन का क्या मोल!
अरे हूँ वन्य-कली सी देव, झाड़ियों में लिखती अनजान।
न सौरभ है, न मधुर मकरंद, न है भ्रमरों का मोहित गान।
कौन सकता है मुझको तोल, हमारे जीवन का क्या मोल!
किन्तु आयी हूँ बिकने आज, तुम्हारे ही हाथों हे नाथ।
अब न ठुकराना, करलो मोल, नाथ! मेरे प्राणों के नाथ।
अरे अपनी पद-रज से तोल, वही मेरे जीवन का मोल!