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न याद किया हुआ कब ही है? / ज्योति जङ्गल / सुमन पोखरेल

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देखी है कभी
न बही हुई नदी?
महसूस की है कभी
न चली हुई हवा?
हर पल बिना रुके
धड़कन को साथ लेकर चलता है दिल,
उसी के साथ चल रहे हैं, समानांतर
ज़िन्दगी के कदम और तुम्हारी यादें
मैने तुम्हें
न याद किया हुआ कब ही है?

आवेग की तरह लेना नहीं चाहिए आगमन को,
प्रत्यागमन शून्यता को जन्म देती है,
शांत टिप टिप
टपक कर हिम की सफ़ेदी,
पवित्र जल की बूँदें जन्म लेती हैं जैसे,
वैसे ही मैंने
प्रेम की हर बूँद में,
देखा है चंचल तुम्हें,
प्यास लेकर हथेली के जल में,
संभाला है कंचन तुम्हें ।

समझा है कभी
पहाड़ियों का धैर्य को?
चले हो कभी
मरुभूमि पर पैरों से छूकर सौंदर्य को?

अपरिभाषित रहते हैं
अनकही चेतनाएँ हृदय के अन्दर
वहीं हैं
तुम, हम और हमारे अनुरागी ऋतुयाँ ।

बस, मौसम का बदल जाने पर घबराना
हारने के लिए भी हो सकता है,
छिपता सूरज और अंधेरा,
कल अनगिनत उजालों में बदल सकते हैं।

सजा लो,
सुंदरतम स्नेह के प्रियतम कलियों को,
वहाँ हर क्षण
एक गुलाब जमा करता हुआ होऊंगा मैं ।

मैंने तुम्हें
न याद किया हुआ कब ही है ?

०००

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