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न ये जीत है न ये हार है / कैलाश झा 'किंकर'
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न ये जीत है न ये हार है
ये वतन का एक क़रार है।
न दिखाई दे जो चमन तुम्हें
तो नज़र में गर्द-गुबार है।
वो कभी समझना न चाहता
तो समझ लें मन में दरार है।
अफवाह पर ही टिका हुआ
ये तेरा समाज सुधार है।
तू बँटा था धर्म के नाम पर
तो बता कि क्या अधिकार है।
है न देश कोई भी हिन्द-सा
जो कि इसके जैसा उदार है।