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न ये तूफ़ान ही अपने कभी तेवर बदलते हैं / अशोक रावत
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न ये तूफ़ान ही अपने कभी तेवर बदलते हैं
न इनके ख़ौफ़ से अपना कभी हम घर बदलते हैं.
न मन में ख़ौफ़ शीशों के न पश्चाताप में पत्थर,
न शीशे ही बदलते हैं, न ये पत्थर बदलते हैं.
समझ में ये नहीं आता, मंज़र बदलते हैं.
अजी इन टोटकों से क्या किसी को नीद आती है,
कभी तकिया बदलते हैं, कभी चादर बदलते हैं.