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न रहा ज़ौक़-ए-रंग-ओ-बू मुझ को / इक़बाल सुहैल
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					न रहा ज़ौक़-ए-रंग-ओ-बू मुझ को 
अब न छेड़ ऐ बहार तू मुझ को 
अब अगर हैं कहीं तो दें आवाज़ 
क्यूँ फिराते हैं कू-ब-कू मुझ को 
अब किसी और की तलाश नहीं 
है ख़ुद अपनी ही जुस्तुजू मुझ को 
न रहा कोई तार दामन में 
अब नहीं हाजत-ए-रफ़ू मुझ को 
हाए उस वक़्त हाल-ए-दिल पूछा 
जब न थी ताब-ए-गुफ़्तुगू मुझ को
 
	
	

