न लौटती कभी गुजर गयी छटा बहार की।
मगर कभी बुझे नहीं शमा जली जो प्यार की॥
हरेक मोड़ पर खड़ी मुसीबतें हज़ार हैं
नहीं नसीब हुई है कभी घड़ी क़रार की॥
निगाह कब मिला सका है स्वयं के जमीर से
नज़र उठी नहीं कभी किसी भी कर्जदार की॥
तलाश लो वह अब्र जो कि तिश्नगी मिटा सके
मिली नहीं अभी तलक नदी वह ऐतबार की॥
ठिठक रहे हो बार-बार किसलिये यूँ राह में
कि एक बार लड़ भी लो लड़ाई आर पार की॥