Last modified on 29 दिसम्बर 2008, at 08:32

न वह कभी आँखों से उतारा ही गया/ विनय प्रजापति 'नज़र'

लेखन वर्ष: २००३

न वह कभी आँखों से उतारा ही गया
और न कभी लबों से पिया ही गया
वह इक दर्द का बवण्डर था शायद
न जिसे कभी दिल में सँभाला ही गया

इक कहकशाँ की रोशनी भी खप गयी
न ज़रा पलकों को झपकाया ही गया
आधे-आधे दिल से देखा था मैंने उसे
न वह कभी पूरे दिल से देखा ही गया

तारीक़ी ने सिर्फ़ मेरे पाए ही चुने
और न कभी मुझसे भागा ही गया
टुकड़े कर दिये उसने मेरी आँखों के
न यह ग़म मुझसे भिगोया ही गया

धीरे-धीरे वह मुझसे दूर चलता गया
न मुझसे उसके क़रीब जाया ही गया
बारिश ने खनका दीं शीशम की पत्तियाँ
न रोकर इस दिल को बहलाया ही गया

पाए:feet, तारीक़ी: darkness