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न वो ज्ञानी, न वो ध्यानी / रफ़ीक शादानी
Kavita Kosh से
न वो ज्ञानी, न वो ध्यानी
न वो विरहमन, न वो शोख
वो कोई और थे
जो तेरे मकां तक पहुंचे
मंदिर मस्जिद बनै न बिगडै
सोन चिरैया फंसी रहै
भाड में जाए देश की जनता
आपन कुर्सी बची रहै
जब नगीचे चुनाव आवत हैं
भात मांगव पुलाव पावत है
जौने डगर पर तलुवा तोर छिल गवा है
ऊ डगर पर चल कै रफीक, बहुत दूर गवा है
तुमका जान दिल से मानित है
तोहरे नगरी कै ख़ाक छानित है
सकल का देखि कै बुद्धू न कहौ
हमहूँ प्यार करै जानित है
गायित कुछ है, हाल कुछ है
लेबिल कुछ है, माल कुछ है
ऊ जौ हम पे मेहरबान हैं
भईया एमहन चाल है कुछ