Last modified on 1 मार्च 2013, at 16:17

न शोख़ियों से करे हैं वो चश्म-ए-गुल-गूँ / वली 'उज़लत'

न शोख़ियों से करे हैं वो चश्म-ए-गुल-गूँ रक़्स
के ऊन के पीने से करता है वहाँ मेरा ख़ूँ रक़्स

न पेच-ओ-ताब-ए-हवा से है आब में गिर्दाब
के मेरे अश्क के आगे करे है जैजूँ रक़्स

तवाफ़-ए-सोख़्ता इश्क़ देख ले ऐ शम्मा
करे है जलने से आगे पतंग-ए-मफ़्तूँ रक़्स

करे है शोला-ए-शम्मा सेहर सा लब पे मेरे
ऐ आफ़ताब-लक़ा ख़ुश हो जान-ए-महज़ूँ रक़्स

मिसाल-ए-क़िबला-नुमा फ़ख़्र फ़िक्र-ए-उज़लत से
करे है मिस्रा-ए-रौशन के बीच मज़मूँ रक़्स