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न संटुलि दिखेणी / सुन्दर नौटियाल

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न संटुलि दिखेणी न घुघुती घुराणी,
डांडि-कांठी बि अब लगदी पुराणी ।
न गोरों का घंडोला न घस्येरों का बाजूबंद,
न फुर्र-फुर्र हवा न सौस्यांद पाणी ।।

हरी-हरी डांडि अब चिपळी बणीगे,
सड़क्यों सी कुड़यों सी बिटी खणीगे ।
क्वै निमुंडी लोळ लीक खड़ी पहाड़ी,
क्वै बरखा की मार सी ऊंदी रड़ीगे ।।
न नयी डाली छ न ऊ कांठी पुराणी,
यौं डांड्यों की पीड़ा नी कैन पछाणी ।।
न गोरों का घंडोला न घस्येरों का बाजूबंद,
न फुर्र-फुर्र हवा न सौस्यांद पाणी ।।

डाल्यौं का नौ पर कुलैं ही कुलैं छा,
न बांज-बुरांस न द्योदार बाण ।
रिण्यां-तुंगलु न करोंदु-किनगौड़,
काफल-भमोर की छ्वीं क्या लगाण ।।
न किनगोड़, हिंसर न करोंदी की धाणी,
न बेर न फेडू न तिमुल दिख्याणी ।
न गोरों का घंडोला न घस्येरों का बाजूबंद,
न फुर्र-फुर्र हवा न सौस्यांद पाणी ।।

न धारा-पंदेरा न मूल कु पाणी,
न जडौ़-काखड़, स्यू की बाच सुण्याणी ।
न कफ्फू बासदू न घुघती न हिलांस,
न फ्योंली, गिरालू साकिनी दिख्याणी ।।
न सजीली धरती न चखुणी चुच्यांणी,
न बांज बुरांस सी धरती सज्याणी ।
न गोरों का घंडोला न घस्येरों का बाजूबंद,
न फुर्र-फुर्र हवा न सौस्यांद पाणी ।।

न डांडौं मा डाल्यों की पूजा होदींन,
न ढुंगौं पर नागराजा नरसिंग रौंदीन ।
न ग्वैर पूजै न मौर डांडौं मा,
न खुदेड़ गीतू की भौण सुणीन ।।
डाल्यौं का नीस ढुंगी तेरी बाटू देखाणी,
बोड़ी आ लठ्याळा या त्वै तैं बुलाणी ।।
न गोरों का घंडोला न घस्येरों का बाजूबंद,
न फुर्र-फुर्र हवा न सौस्यांद पाणी ।।
न संटुलि दिखेणी न घुघुती घुराणी,
डांडि-कांठी बि अब लगदी पुराणी ।