भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

न समझो आसमानी बोलता हूँ / अभिनव अरुण

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

न समझो आसमानी बोलता हूँ
मैं ग़ालिब की निशानी बोलता हूँ

है हिंदी और उर्दू से मुहब्बत
ज़ुबां हिन्दोस्तानी बोलता हूँ

मुलम्मों से मुझे है सख्त नफरत,
सचाई को रूहानी बोलता हूँ

जिसे तुम दुनियादारी बोलते हो,
मैं उसको बेईमानी बोलता हूँ

गुमां अपनी मलंगी पर मुझे है,
ऐ दुनिया तुझको फ़ानी बोलता हूँ

है उसका नूर अव्वल और आला,
उसी की हुक़्मरानी बोलता हूँ

जो सुनता है उसे मिलती है बरक़त,
मैं सज़्दों की कहानी बोलता हूँ

सवालों के मेरे उत्तर बताओ,
महाभारत का पानी बोलता हूँ

सियासत से भरोसा उठ गया है ,
बग़ावत की है ठानी बोलता हूँ

उसूलों के लिए जीना और मरना,
यही है ज़िंदगानी बोलता हूँ