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न समझो ख़ुद-ब-ख़ुद दिल बेख़बर है / वली दक्कनी
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न समझो ख़ुद-ब-ख़ुद दिल बेख़बर है
निगह में उस परी रू की असर है
अझूँ लग मुख दिखाया नहीं अपस का
सजन मुझ हाल सूँ क्या बेख़बर है
मुरव्वत तर्क मत कर ऐ परीरू
मुरव्वत में मुरव्वत मा'तबर है
तेरे क़द के तमाशे का हूँ तालिब
कि राह-ए-रास्त बाज़ी बेख़तर है
तिरी तारीफ़ करते हैं मलायक
सना तेरी कहाँ हद्द-ए-बशर है
बयान-ए-अहल-ए-मा'नी है मुतव्वल
अगरचे हस्बेज़ाहिर मुख़्तसर है
'वली' मुझ रंग कूँ देखे नज़र भर
अगर वो दिलरुबा मुश्ताक़-ए-ज़र है