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न सही आज तो कल मिलेगा / हरि फ़ैज़ाबादी
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न सही आज तो कल मिलेगा
मीठा ही सब्र का फल मिलेगा
वक़्त के मत सवालों में उलझो
वक़्त पे उनका ख़ुद हल मिलेगा
क्या अजब है ये दस्तूर-ए-क़ुदरत
साँप से लड़ के संदल मिलेगा
सोचिए वरना जल की जगह पर
गंगा-यमुना से काजल मिलेगा
यूँ ही जंगल मंे बस्ती बसी तो
बस्ती-बस्ती में जंगल मिलेगा
अपनों के ही सहारे से घर में
बाहरी लोगों को बल मिलेगा
भूल जाओ कि मिस्ल-ए-पयम्बर
आदमी अब मुकम्मल मिलेगा