भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

न सुखन मेरा कभी तौलना / सुदेश कुमार मेहर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

न सुखन मेरा कभी तौलना, वो सुखनवरों का ख़याल है
मेरे हर्फ़ में जो न रूह हो, तो ये शायरी भी मुहाल है

वो हजूम है वो सुकून हैं, वो सुरूर है वो जुनून है,
मेरी हसरतों की है वो नदी, मेरी ख्वाहिशों का ज़िबाल है

ये मुहब्बतें न कही गई, न सुनी गई हैं जुबान से,
उसे लफ्ज़ में जो बयां करे, किसी और की क्या मजाल है

ये जो चाँद है जो हयात है, ये फरीद सा जो ज़माल है
ये अकूत सा जो शकील है, वो तो आप ही की मिसाल है

उसे क्या कहूं वही ज़ीस्त है, वही ज़िन्दगी का है मायने,
मेरी खामुशी ही सुने पढ़े, मुझे पूछता क्यूँ सवाल है

उसे क्यूँ नहीं मैं गिले करूं, मुझे क्यूँ नहीं हैं शिकायतें,
उसे रंज है इसी बात का, उसे आज भी ये मलाल है
 

मुझे देख के भी न देखना, मेरे इश्क को ये क़ुबूल था,
किसी गैर से वो जो मिल गया, मेरी आशिकी को मलाल है

न सुना करो मुझे गौर से, न लिखा करो मुझे रेत पे,
मैं रिवाज़ हूँ नये इश्क का, मुझे सोचना भी बवाल है