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न सुनती है न कहना चाहती है / मंजूर 'हाशमी'
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न सुनती है न कहना चाहती है
हवा इक राज़ रहना चाहती है
न जाने क्या समाई है के अब की
नदी हर सम्त बहना चाहती है
सुलगती राह भी वहशत ने चुन ली
सफ़र भी पा बरहना चाहती है
तअल्लुक़ की अजब दीवानगी है
अब उसे के दुख भी सहना चाहती है
उजाले की दुआओं की चमक भी
चराग़-ए-शब में रहना चाहती है
भँवर में आँधियों में बाद-बाँ में
हवा मसरूफ रहना चाहती है