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न हन्यते / उज्ज्वल भट्टाचार्य
Kavita Kosh से
अपनी बालकोनी से
बाहर फैली हरियाली देखता हूँ ।
कभी न कभी
मुझे भी हरियाली का हिस्सा बनना है,
जो
कड़ी धूप में
या बर्फ़ के नीचे
मुरझा जाने के बाद
खिल उठेगा
बार-बार ।