न हरीफ़े जाँ न शरीक़े-ग़म शबे-इंतज़ार कोई तो हो / फ़राज़
न हरीफ़े-जाँ<ref>जान के दुश्मन</ref> न शरीक़े-ग़म<ref>दु:ख के साझीदार</ref> शबे-इन्तज़ार<ref>प्रतीक्षा की रात</ref> कोई तो हो
किसे बज़्मे-शौक़<ref>अभिलाषा की सभा</ref> में लाएँ हम दिले-बेक़रार<ref>व्याकुल हृदय
</ref> कोई तो हो
किसे ज़िन्दगी है अज़ीज़<ref>प्रिय</ref> अब किसे आरज़ू-ए-शबे-तरब<ref>उल्लास की इच्छा</ref>
मगर ऐ निगारे-वफ़ा- तलब<ref>प्रेम-का पालन करने की आकांक्षा रखने वाली सुन्दरता</ref> तिरा एतिबार<ref>भरोसा</ref> कोई तो हो
कहीं तारे-दामने-गुल मिले<ref>फूल की आँचल का तार</ref> तो य मान लें कि चमन खिले
कि निशान फ़स्ले-बहार<ref>वसंत ऋतु</ref> का सरे-शाख़सार<ref>टहनियों के छोर पर</ref> कोई तो हो
ये उदास-उदास-से बामो-दर<ref>छत और द्वार</ref> , ये उजाड़-उजाड़-सी रहगुज़र
चलो हम नहीं न सही मगर सरे-कू-ए-यार<ref>प्रियतम की गली</ref> कोई तो हो
ये सुकूने-जाँ<ref>प्राणों का चैन</ref> की घड़ी ढले तो चराग़े-दिल ही न बुझ चले
वो बला से हो ग़मे-इश्क़<ref>प्रीति की पीड़ा </ref> या ग़मे-रोज़गार<ref>जीवन-व्यथा</ref> कोई तो हो
सरे-मक़्तले-शबे-आरज़ू<ref>आकांक्षाओं की रात्रि का वध-स्थल</ref> रहे कुछ तो इश्क़ की आबरू
जो नहीं अदू<ref>शत्रु</ref> तो 'फ़राज़' तू कि नसीबे-दार<ref>सूली का भाग्य
</ref> कोई तो हो