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न है मेरी न ही यह तेरे घर की / रंजना वर्मा
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					न है मेरी न ही ये तेरे घर की 
फ़िज़ा बिगड़ी है इस सारे शहर की 
किसे इल्जाम दें ये तो बताओ
हुई कम रौशनी सब के ही दर की 
किया बदनाम क्यों सारे नगर में
परख सच्चाई तो लेते खबर की 
बता देंगे तुम्हे हम हाल अपना
मिटे पहले थकावट तो सफ़र की 
हवा पैग़ाम लायी है खिज़ा का
लगी हैं पत्तियाँ झड़ने शज़र की 
गुज़र अब तो गयी है रात काली
हो अगवानी ज़रा उठ के सहर की 
क़ता कह लो ग़ज़ल या शें' र कोई
मगर टूटे नहीं लय अब बहर की
 
	
	

