भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पंखा डोलाय दिहोॅ ना / ब्रह्मदेव कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सजनी- पंखा डोलाय दिहोॅ ना बलम जी, पंखा डोलाय दिहोॅ ना।
हमरा गरमी बड़ी सताबै बलम जी, पंखा डोलाय दिहोॅ ना।

बलम- कौनी गुणमां पेॅ गे सजनी, कौनी गुणमां पे ना।
बोल बोल पंखा तोरा डोलैबोॅ सजनी, कौनी गुणमां पे ना।

आबेॅ पंखा तोरा डोलैबोॅ हे सजनी, चादर बिछाय दिहोॅ ना।

सजनी- पंखा डोलाय दिहोॅ ना बलम जी, पंखा डोलाय दिहोॅ ना।
बलम- आबेॅ पंखा तोरा डोलैभों सजनी, चादर बिछाय दिहोॅ ना।