भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पंखुरी / सुनीता जैन
Kavita Kosh से
वृन्त पर
अन्तिम विवर्ण पंखुरी ज्यों
हार रही काल से
डूबते, जल की सतह पे
छटपटाते
हाथ से
उस विदा-बेला विदारक
मन्त्र वे
स्वस्ति के!