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पंख तितली का / योगेन्द्र दत्त शर्मा
Kavita Kosh से
एक टूटा पंख तितली का
कहां से आ गया!
धूप में झोंका हवा का
फिर मुझे सहला गया!
दीखती थी
हर जगह, हर पल
मुझे कोई कमी
किन्तु सहसा
रूख में
आने लगी फिर-से नमी
एक टूटा पंख तितली का
अचानक आ गया!
चुप्पियों में फिर मुझे
गुंजान-सी पहना गया!
फिर मुझे
भूले हुए अहसास
भरमाने लगे
आचमन
सूरजमुखी के
याद फिर आने लगे
एक टूटा पंख तितली का
उमगता आ गया!
खुशबुओं से फिर नई
पहचान-सी करवा गया!