भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पंगु पर्वत पर चढ़ोगे / हरिवंशराय बच्चन
Kavita Kosh से
पंगु पर्वत पर चढ़ोगे!
चोटियाँ इस गिरि गहन की
बात करतीं हैं गगन से,
और तुम सम भूमि पर चलना अगर चाहो गिरोगे।
पंगु पर्वत पर चढ़ोगे!
तुम किसी की भी कृपा का
बल न मानोगे सफल हो?
औ’ विफल हो दोष अपना सिर न औरों के मढ़ोगे?
पंगु पर्वत पर चढ़ोगे!
यह इरादा नप अगर सकता
शिखर से उच्च होता,
गिरि झुकेगा ही इसे ले जबकि तुम आगे बढ़ोगे।
पंगु पर्वत पर चढ़ोगे।