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पंचक छै / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो
Kavita Kosh से
खटिया नै घोरिहोॅ हो, पंचक छै।
वेदोॅ-पुरानोॅ में खिखलोॅ छै कत्तो जरूरी भी काम पड़ेॅ
रस्सौ के बंधन जें बान्हेॅ, ऊ बंचक छै!
पूर्वज ने जे-जे बतैने छै सोची केॅ समझी केॅ
ज्ञानोॅ सें हमसब के बाहर छै
दू दिन के छौड़ा छौ, की बुझभौ?
घड़ी-कुघड़ी के तंचक छै!
हेंठै में सुतभेॅ जों पाँच दिन, की होथौं?
घरोॅ में साँप छै, की होतै?
जबतक आयुर्बल छै तब तक जमराझौं नै छूवै छै
साँप आरो बीछा के की कहना;
एकर्है लेॅ तोड़भेॅ तों जुग-जुग के नीयम केॅ?
तीनो जमाना में जे सच छै?
खटिया नै घोरिहोॅ हो पंचक छै।