पंचतत्त्व / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
एक समय जड़ जगत बीच जे पंच तत्त्व विख्यात
क्षिति जल पाबक पवन गगनमे उठल कलह केर बात
बाजलि पृथ्वी हम पृथुला, चल अचल हमर दुहु नाम
धन-धान्य क जननी हम, हमरहिसँ भौतिक सुखधाम
पालन करी जगत केँ जनम-मरन हमरहि सुख-अंक
सर्वसहा हमहि ककरा नहि क्षमा करी निःशंक’
गरजल जलद-पटल,- ‘यदि नहि जल दी की किछु उपजैत?
रुख-सुख जगती बनइत, सरस न कखनहु रसा रहैत’
सनसन बहइत दौडत्रल कहइत पवन गरजि गंभीर
हमहि बहन कय उमड़बइत छी नभ बिच जत घन नीर
तपन तपित मन किरन पसारि कहल, सभ हमर प्रभाव
आलोकित जग, उष्णताक बल प्राणी जीवन पाव’
नील गगन चुप रहल न, बाजल करइत शब्द उचार!
‘आकाश न अवकाश दितय तँ होइत न रवि सचार
नहि मेघ क प्रचार, नहि धरती धरइत जीव अशेष
पबनहु धरि नहि गति पबइत पुनि रहइत कत के शेष’
-- -- --
चेता गेल चेतना चितगत पंच तत्त्व परिभूत
यदि चैतन्य न रहत जगत जड़ व्यर्थ अर्थ अनुभूत