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पंचतत्व / कल्पना लालजी
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पंचतत्व का तन यह मेरा
ज्यों माटी का ढेरl
दुनिया कहती इसको मेरा
पर मेरा न तेरा
हिंदुत्व ने सींचा इसको
संस्कारों ने संवारा
निष्काम कर्म किये जा प्राणी
यह दुनिया रैन बसेरा
माटी से तू जन्मा है
माटी में मिल जाना
लिखा भाग्य में जो है तेरे
उतना ही तुझको पाना
सांसों की डोरी से रिश्ता
यहीं तोड़ कर जाना
उस उपरवाले के आगे
चले न कोई बहाना