पंछियों ने क्या देखा ... / ईगर सिविरयानिन / अनिल जनविजय
बादल छाए थे, उड़ रहे थे पाखी सागर के ऊपर
पाखी एक ताक रहा नीचे को, वहाँ लहरें थीं धूसर
नावों सी उनपर तैर रही थीं कुछ लोगों की लाशें
थी भोर की प्रतीक्षा उनको, वो अपना ठौर तलाशें
मैदान था वो रक्तसना, जिस पे गिद्ध चीत्कार रहे थे
रक्त भरे गड्ढों को देख, ख़ूब ज़ोरों से फूत्कार रहे थे
भय से, डर से, ख़ौफ़ से, ठण्ड से ख़ून जम गया था
शव ही शव थे वहाँ चारों ओर, जीवन यूँ थम गया था
काँव-काँव करता एक कौआ, भविष्यवक्ता बना हुआ
गाँव में बने गिरजाघर के ऊँचे से गुम्बद पर बैठा था
जिसे कहा जाता था युद्ध में खेत रहे दस्ते का स्मारक
लज्जाहीन वह युद्ध था बहुत भयानक, बेहद मारक
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय
लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
Игорь Северянин
Что видели птицы...
Чайка летела над пасмурным морем,
Чайка смотрела на хмурые волны:
Трупы качались на них, словно челны,
Трупы стремившихся к утру и зорям.
Коршун кричал над кровавой равниной,
Коршун смотрел на кровавые лужи;
Видел в крови замерзавших от стужи,
Трупы стремившихся к цели единой.
Каркая, горя вещунья - ворона
Села на куполе сельского храма.
Теплые трупы погибших без срама -
Памятник "доблестных" дел эскадрона.