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पंछी ने / रामस्वरूप 'सिन्दूर'

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पंछी ने दृग मूँद, लिये हैं!

कितने ऊँचे आसमान से,
मेघों के पुष्पक विमान से,

छोड़ दिया नादान करों ने,
और पंख भी बांध दिये हैं!
पंछी ने दृग मूँद, लिये हैं!
इतनी चेतनता क्षण-क्षण में,
कब आयी होगी जीवन में,

एक घूँट में ही प्राणों ने,
अनगिन सूरज-चाँद पिये हैं!
पंछी ने दृग मूँद, लिये हैं!

कौन कहाँ आँचल फैलाये,
नीचे तो सागर लहराये,

तेज हवाओं के झोंकों ने,
सारे संबल दूर किये हैं!
पंछी ने दृग मूँद, लिये हैं!