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पंजाब रो कागद / श्याम महर्षि
Kavita Kosh से
अठै सूं अबै
व्हीर हुयग्या है
अबखाई रा दिन,
सुख रो सुरज
उगण लागग्यो है अठै,
गेहूं-चणा अर सरसूं सूं
भरया खेतां मांय
लिलोती री धजा फरूकै अठै,
पाछा हुयग्या है
बंद थैलां मांय
ठंडा हुय‘र
बन्दूक लांचर
अर-पिस्तौल अठै,
बनड़ै रा गीत
अर भांगड़ा निरत
हुवणै नैं लागग्या है
ओरूं अठै,
लारलै बरसां सूं
गमैड़ी मुळक
अबै टाबरां
अर लुगायां रै मुण्डै
बापरण नै लागगी है
फेरूं अठै,
सिंझ्या
पड़वां अर छानां मांय
दिवलै रो चानणौ
ओरूं दिखण
लागग्यो है अठै,
मिन्दर री झालर
अर गुरूद्वारै री
वाणी
दिनुगै-आथण
सुणीजण लागगी है अठै
शांति रो सूरज
अर प्रेम रो चांद
अबै नित उगणनै लागग्यो है अठै !