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पकड़ कालजा रोवण लाग्गी बेटे की कौली भर कै / मांगेराम

पकड़ कालजा रोवण लाग्गी बेटे की कौली भर कै
आज कंवर तनैं जाणा होगा धर्मराज पनमेशर कै

मां के हाथां मळ-मळ नहाले हट कै फेर नहीं नहाणा
मां के हाथां भोजन खाले हट कै फेर नहीं खाणा
जो कोय गया किले के भीतर हट कै फेर नहीं आणा
जिस जगहां तेरा बाप गया सै उसे जगहां तनैं जाणा
हिचकी बंधगी ना जीभ उथलती प्राण लिकड़गे डर-डर कै

जमना जी म्हं डूब मरूं तै गोते आळी होज्यां हैं
गणका बण कै सूवा पढ़ाल्यूं तै तोते आळी होज्यां हैं
भाई चारे तै प्रैम करूं तै न्योते आळी होज्यां हैं
ब्याह शादी तेरे हो जाते तो मैं पोते आळी होज्यां हैं
जळुआं पूजण बहु चलै तेरी बंटा टोकणी सिर धर कै

बारां साल रहया मां धोरै मां तै हाथ छुटा चाल्या
मोहर, असर्फी, कणी, मणी सब अपणे हाथ लुटा चाल्या
धर्म का पेड्डा ला राख्या था अपणे हाथ कटा चाल्या
इन्द्रमण मेरे कंवर लाडले बाप का वंश मिटा चाल्या
बिन सांकळ कुण्डे ताळी ताळा भेहड़ दिया घर कै

‘मांगेराम दर्द छाती के फटे जख्म नै सीऊंगी
लखमीचन्द्र गुरु अपणे के उठ चरण नित नीऊंगी
तेरे मरने के बाद कंवर ना ठण्डा पाणी पीऊंगी
जब जा लेगा किले के भीतर एक घड़ी ना जीऊंगी
तेरी गेल्यां-गेल्यां आ ल्यूंगी मनैं कफन बांध लिया सिर कै