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पक्षधरता / व्योमेश शुक्ल

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हम बारह राक्षस

कृतसंकल्प यज्ञ ध्यान और प्रार्थनाओं के ध्वंस के लिये

अपने समय के सभी ऋषियों को भयभीत करेंगे हम

हमीं बनेंगे प्रतिनिधि सभी आसुरी प्रवृत्तियों के

‘पुरुष सिंह दोउ वीर’ जब भी आएँ, आएँ ज़रूर

हम उनसे लडेंगे हार जाने के लिये, इस बात के विरोध में

कि असुर अब हारते नहीं

कूदेंगे उछलेंगे फिर-फिर एकनिष्ठ लय में

जीतने के लिये नहीं, जीतने की आशंका भर पैदा करने के लिये

सत्य के तीर आएँ हमारे सीने प्रस्तुत हैं

जानते हैं हम विद्वान कहेंगे यह ठीक नहीं

‘सुरों-असुरों का विभाजन

अब एक जटिल सवाल है’


नहीं सुनेंगे ऐसी बातें

ख़ुद मरकर न्याय के पक्ष में

हम ज़बर्दस्त सरलीकरण करेंगे