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पक्षी / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
कितने अच्छे लगते हैं
ये पक्षी
जब उतरते हैं धीरे-धीरे
आसमान से
बहते हुए पत्तों की तरह
और अपना पूरा शरीर
ढ़ीला-ढ़ाला कर
रख देते हैं जमीन पर
फिर कुछ देर खाते-पीते हैं
फुदकते हैं इधर-उधर और
वापस उड़ जाते हैं
अपनी पूरी ताकत से,
बिना किसी शोर के बादलों में
वाष्पित जल की तरह ।
देखता हूँ हर दिन
इसी तरह इनका आना और जाना
और चिन्तित नहीं देखा इन्हें कभी
आने वाले कल के लिए ।