भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पक्षी / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नीले नभ का पंछी हूँ मैं
गंध पवन का साथी हूँ
नीड़ बनाता हूँ हर डाली
हरी भरी पन्ने की प्याली
फुदक फुदक कर दाना लाता
गीतों से ही मेरा नाता
जागो कह कर सुबह जगाता
चलो काम पर यही सिखाता
जल्दी सोना जल्दी उठना
समय न खोना यही सिखाता